तुम साथ अपने सब ले गए,
हाथ की घड़ी, वो गले की चैन,
दो वक़्त मुलाकात, बेचैन मन,
बातें भी थी कुछ एक आद दफ़्तर की,
पर्दे भी थे, जो सी दिए थे तुमने,
एक कप चाय और दो मिनट मैगी,
ये सब तो ले ही गए तुम साथ,
सिलवटें रह गई जाते जाते,
सिगरेट का धुंआ, और कुछ यादें,
ये समेटना रह गया था,
फिर आना तुम, घर को मेरे,
इस बार थोड़ा रुक ही जाना।