देखा तुमने आज,
मौसम कितना बदला हुआ हैं,
तुम्हारे सूट के रंगों जैसा
शाम से खिला खिला सा हैं।
शाम की लाली सा रंगा
जो झुमका तुमने पहना हैं,
लगता हैं आसमाँ से
सूरज उतार लाये हो तुम।
इतने दिनों में तुमने हर बार
आईने के सामने आ कर पूछा हैं,
“कैसी लग रही हूँ मैं?”
इस शाम इशारों में भी नहीं पूछा।
सुनो,
सच कहूँ नज़र न हटा सका,
इतनी हसीन तुम हो।
अगली बार पूछ भी लेना।