न पूछ ज़ायका मह का इस शहर में,
जहराब पीते रहे तुझे देखते देखते हम।
जाम ख़त्म हो गया लेकिन कैसे,
सहरा–ए– ज़िन्दगी में अकेले हैं हम।
फ़ुरसत से तन्हा दिखते हैं सब यहां,
ख़्यालों के सोहराब में तेरे हैं हम।
मिलती हैं बे–लौस तन्हाई मय–कदे में,
मरासिम बढ़ाए तो बढ़ाए किस्से हम।
न पूछ ज़ायका मह का इस शहर में,
शर्ब पीते रहे तुझे देखते देखते हम।